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एक लड़की विवाह करके ससुराल में आयी|

घर में एक तो उसका पति था, एक सास थी और एक दादी सास थी|

वहाँ आकर उस लड़की ने देखा कि दादी सास का बड़ा अपमान, तिरस्कार हो रहा है!

छोटी सास उसको ठोकर मार देती, गाली दे देती|

यह देखकर उस लड़की को बड़ा बुरा लगा और दया भी आयी! उसने विचार किया कि अगर मैं सास से कह कहूँ कि आप अपनी सास का तिरस्कार मत किया करो तो वह कहेगी कि कल की छोकरी आकर मेरे को उपदेश देती है, गुरु बनती है!

अतः उसने अपनी सास से कुछ नहीं कहा| उसने एक उपाय सोचा| वह रोज काम-धंधा करके दादी सास के पास जाकर बैठ जाती और उसके पैर दबाती|

जब वह वहाँ ज्यादा बैठने लगी तो यह सास को सुहाया नहीं| एक दिन सास ने उससे पूछा कि ‘बहु! वहाँ क्यों जा बैठी?’ लड़की ने कहा कि ‘बोलो, काम बताओ!’ सास बोली कि ‘काम क्या बतायें, तू वहाँ क्यों जा बैठी?’ लड़की बोली कि ‘मेरे पिता जी ने कहा था कि जवान लड़कों के साथ तो कभी बैठना ही नहीं, जवान लड़कियों के साथ भी कभी मत बैठना; जो घर में बड़े-बूढ़े हों, उनके पास बैठना, उनसे शिक्षा लेना| हमारे घर में सबसे बूढ़ी ये ही हैं, और किसके पास बैठूँ?

मेरे पिताजी ने कहा था कि वहाँ हमारे घर की रिवाज नहीं चलेगी, वहाँ तो तेरे ससुराल की रिवाज चलेगी| मेरे को यहाँ की रिवाज सीखनी है, इसलिये मैं उनसे पूछती हूँ कि मेरी सास आपकी सेवा कैसे करती है?

’ सास ने पूछा कि ‘बुढ़िया ने क्या कहा?’ वह बोली कि ‘दादी जी कहती हैं कि यह मेरे को ठोकर नहीं मारे, गाली नहीं दे तो मैं सेवा ही मान लूँ!’

सास बोली कि ‘क्या तू भी ऐसा ही करेगी?’ वह बोली कि ‘मैं ऐसा नहीं कहती हूँ, मेरे पिता जी ने कहा कि बड़ों से ससुराल की रीति सीखना!’


सास डरने लग गयी कि मैं अपनी सास के साथ जो बर्ताव करुँगी, वही बर्ताव मेरे साथ होने लग जायगा!

एक जगह कोने में ठीकरी इकट्ठी पड़ी थीं|     सास ने पूछा-‘बहू! ये ठीकरी क्यों क्यों इकट्ठी की हैं?’
लड़की ने कहा-‘आप दादी  जी को ठीकरी में भोजन दिया करती हो, इसलिये मैंने पहले ही जमा कर ली|’


‘तू मेरे को ठीकरी में भोजन करायेगी क्या?’


‘मेरे पिता जी ने कहा कि तेरे वहाँ की रीति चलेगी|’


‘यह रीति थोड़े ही है!’


‘तो आप फिर आप ठीकरी मैं क्यों देती हो?’


‘थाली कौन माँजे?’


‘थाली तो मैं माँज दूँगी|’


‘तो तू थाली में दिया कर, ठीकरी उठाकर बाहर फेंक|’

अब बूढ़ी माँजी को थाली में भोजन मिलने लगा|

सबको भोजन देने के बाद जो बाकी बचे, वह खिचड़ी की खुरचन, कंकड़ वाली दाल माँ जी को दी जाती थी| लड़की उसको हाथ में लाकर देखने लगी|

सास ने पूछा-‘बहू! क्या देखती हो?’


‘मैं देखती हूँ कि बड़ों को भोजन कैसा दिया जाय|’


‘ऐसा भोजन देने की कोई रीति थोड़े ही है!’


‘तो फिर आप ऐसा भोजन क्यों देती हो?’


‘पहले भोजन कौन दे?’


‘आप आज्ञा दो तो मैं दे दूँगी|’


‘तो तू पहले भोजन दे दिया कर|’


‘अच्छी बात है!’


अब बूढ़ी माँ जी को बढ़िया भोजन मिलने लगा| रसोई बनते ही वह लड़की ताजी खिचड़ी, ताजा फुलका, दाल-साग ले जाकर माँ जी को दे देती| माँ जी तो मन-ही-मन आशीर्वाद देने लगी|

माँ जी दिनभर एक खटिया में पड़ी रहती| खटिया टूटी हुई थी| उसमें से बन्दनवार की तरह मूँज नीचे लटकती थी| लड़की उस खटिया को देख रही थी|

सास बोली कि ‘क्या देखती हो?’
‘देखती हूँ कि बड़ों को खाट कैसे दी जाय|’
‘ऐसी खाट थोड़े ही दी जाती है! यह तो टूट जाने से ऐसी हो गयी|’
‘तो दूसरी क्यों नही बिछातीं?’
‘तू बिछा दे दूसरी|’
‘आप आज्ञा दो तो दूसरी खाट बिछा दूँ!’


अब माँ जी के लिए निवार की खाट लाकर बिछा दी गयी|

एक दिन कपड़े धोते समय वह लड़की माँ जी के कपड़े देखने लगी| कपड़े छलनी हो रखे थे|

सास ने पूछा कि ‘क्या देखती हो?’


‘देखती हूँ कि बूढों को कपड़ा कैसे दिया जाय|’


‘फिर वही बात, कपड़ा ऐसा थोड़े ही दिया जाता है? यह तो पुराना होने पर ऐसा हो जाता है|’


‘फिर वही कपड़ा रहने दें क्या?’
‘तू बदल दे|’


अब लड़की ने माँ जी का कपड़ा चादर, बिछौना आदि सब बदल दिया| उसकी चतुराई से बूढ़ी माँ जी का जीवन सुधर गया! अगर वह लड़की सास को कोरा उपदेश देती तो क्या वह उसकी बात मान लेती? बातों का असर नहीं पड़ता, आचरण का असर पड़ता है| 


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